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प्र हि क्रतुं॑ बृ॒हथो॒ यं व॑नु॒थो र॒ध्रस्य॑ स्थो॒ यज॑मानस्य चो॒दौ। इन्द्रा॑सोमा यु॒वम॒स्माँ अ॑विष्टम॒स्मिन्भ॒यस्थे॑ कृणुतमु लो॒कम्॥

English Transliteration

pra hi kratuṁ vṛhatho yaṁ vanutho radhrasya stho yajamānasya codau | indrāsomā yuvam asmām̐ aviṣṭam asmin bhayasthe kṛṇutam u lokam ||

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Pad Path

प्र। हि। क्रतु॑म्। बृ॒हथः॑। यम्। व॒नु॒थः। र॒ध्रस्य॑। स्थः॒। यज॑मानस्य। चो॒दौ। इन्द्रा॑सोमा। यु॒वम्। अ॒स्मान्। अ॒वि॒ष्ट॒म्। अ॒स्मिन्। भ॒यऽस्थे॑। कृ॒णु॒त॒म्। ऊँ॒ इति॑। लो॒कम्॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:30» Mantra:6 | Ashtak:2» Adhyay:7» Varga:13» Mantra:1 | Mandal:2» Anuvak:3» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (इन्द्रासोमा) सेनापति और ऐश्वर्य्यवान् महाशयो! (युवम्) जो तुम दोनों (रध्रस्य) सम्यक् सिद्ध करते हुए (यजमानस्य) सुखदाता यजमान के (हि) ही (चोदौ) प्रेरक (यम्) जिसको (प्र,बृहथः) बढ़ाओ और जिस (क्रतुम्) बुद्धि को (वनुथः) माँगो चाहो वे तुम दोनों सुखी (स्थः) होओ (अस्मिन्) इस (भयस्थे) भय में स्थित (अस्मान्) हमको (अविष्टम्) व्याप्त होओ (उ) और (लोकम्) देखने योग्य स्थान वा देश को (कृणुतम्) करो ॥६॥
Connotation: - राजपुरुष बहुत बल और धनाढ्य लोग यथेष्ट ऐश्वर्य्य को पाकर किसी को भय न देवें किन्तु सदैव दरिद्री और निर्बलों को सुख में स्थापन करें, निवास करावें ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे इन्द्रासोमा यौ युवं रध्रस्य यजमानस्य हि चोदौ यं प्रबृहथो यां क्रतुं वनुथस्तौ सुखिनौ स्थः। अस्मिन् भयस्थे अस्मानविष्टमु लोकं कृणुतम् ॥६॥

Word-Meaning: - (प्र) (हि) खलु (क्रतुम्) प्रज्ञाम् (बृहथः) वर्द्धयेथाम् (यम्) (वनुथः) याचेथाम् (रध्रस्य) संराध्नुवतः (स्थः) भवथः (यजमानस्य) सुखप्रदातुः (चोदौ) प्रेरकौ (इन्द्रासोमा) सेनापत्यैश्वर्य्यवन्तौ (युवम्) युवाम् (अस्मान्) (अविष्टम्) व्याप्नुतम् (अस्मिन्) (भयस्थे) भये तिष्ठतीति तस्मिन् (कृणुतम्) (उ) (लोकम्) द्रष्टुं योग्यम् ॥६॥
Connotation: - राजपुरुषा बहुबलं धनाढ्याः पुष्कलमैश्वर्य्यं च प्राप्य कस्मैचिद्भयं न दद्युः किन्तु सदैव दरिद्रनिर्बलान् सुखे निवासयेयुः ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - राजपुरुषांनी अत्यंत बल व धनाढ्य लोकांनी यथेष्ट ऐश्वर्य प्राप्त करून कुणालाही भयभीत करू नये, तर सदैव दरिद्री व निर्बलांना सुखात ठेवावे. ॥ ६ ॥